Friday, April 12, 2013

न कोई नौटंकी न कोई साला !

नौटंकी साला देखने के बाद यह सोचने को मजबूर होना पड़ता है कि क्या निर्देशक रोहण सिप्पी नौटंकी और थिएटर का फर्क समझते हैं या नहीं। उनके तमाम चरित्र स्टेज एक्टर हैं, पर वह नौटंकी करते नज़र आते हैं। रोहन सिप्पी की यह कॉमेडी फिल्म है, लेकिन रोहन के फिल्म के पत्रों के संवादों के साथ बैक्ग्राउण्ड में हंसी के स्वर भर देने चाहिए, ताकि दर्शकों को मालूम हो जाता कि संवाद हंसने वाले हैं और वह हँसना शुरू कर देता। जहां तक अभिनय का सवाल करने, जब कलाकारों के लिए कुछ अच्छा लिखा ही नहीं गया था तो वह अच्छा करते भी कैसे। वैसे पूजा सलवी, इवेलिन शर्मा को ठीक ठाक हिन्दी सीखने और अभिनय करने के लिए बरसों लग जाएंगे और तब तक यह दोनों हीरो की अम्मा बनने की उम्र की तब जाएंगी । कौन कमबख्त कहता है कि आयुष्मान खुराना को एक्टिंग आती है। वह तो मुंह को कई कोण में चलाने फिरने को ही एक्टिंग समझता है। अगर वह विकी दोनोर का स्पर्म डोनेट करने वाला विकी नहीं होता तो इतना माशूर भी नहीं होता। कुणाल रॉय कपूर को सलाह है कि वह मुंबई में हलवाई की दुकान खोल ले। लखनऊ के ज्यादातर हलवाई उनही की कद काठी वाले पाये जाते हैं। वैसे अगर आप अनिद्रा के शिकार हैं तो रात में इस फिल्म की डीवीडी लाकर देखें, शर्तिया नींद साली आएगी। नौटंकी स्साला!!!

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